कड़कती धुप में , मीठे साये का एहसास हो तुम माँ,
तेज़ बारिश में एक ढाल सी हो तुम माँ,
मेरी आँखों से उस एक आंसू को बहने से रोक लेती हो तुम,
मेरी हर परेशानी को अपना सा बना लेती हो तुम…
नींद न आये तो थपकी देके सुलाती हो,
मेरी शैतान हरकतों पर आँखें भी दिखाती हो,
बड़ी हो गयी हू , फिर भी तुम्हारे लिए छोटी हूँ माँ,
अपने बच्चों को डाँट कर तुम्हारे आँचल में रो लेती हूँ माँ…
मोम सा पिघल के फिर जम जाने की हिम्मत देती हो तुम,
हस्ते हस्ते आंसू पोछने का होंसला देती हो तुम,
मेरे रोने से रो देती तुम, मेरे हसने से हँस देती तुम,
कैसा प्यारा बंधन है, कुछ कहने से पहले समझ लेती तुम…..
आज कुछ कहना था तुमसे माँ,
दिल ज़रा हल्का करना था माँ,
सोचा तुम्हे पास बुलाऊ,
लेकिन तुम हो जहाँ, कैसे तुम्हे आवाज़ लगाऊ …..
याद तो तुम आती हो बहुत,
आंसू भी दे जाती हो बहुत….
पर है ये मुझे एहसास,
हूँ मैं तुम्हारी सबसे ख़ास….
न रोउंगी मैं तुम्हारे गम में,
मुझे देख कर तुम्हे रोना आएगा….
जब तुम्हारी याद आएगी,
मुस्कुरा के देखूंगी उन थपकियों को, उन बातों को,उस डाँट की मिठास और प्यार भरी फटकार को……
मैं तुम्हे नहीं देख सकती,
पर तुम मुझे देख रही हो माँ….
नम आँखों का नहीं,
खिलखिलाती मुस्कराहट का इंतज़ार कर रही हो माँ !!
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